Friday, October 17, 2008

पता नहीं था

मनुष्य तू इतना निर्मम हो जाएगा
पता नहीं था




उस गरीब का घर जला कर, उसको बेघर बना कर,


जाड़े मैं कांपते और गरजती बारिश में

उस पेड़ के नीचे देख, उसको सर छिपाते

उस का घर उजाड़ कर , अपना बसायेगा I

पता नहीं थाI



मनुष्य तू इतना निर्मम हो जाएगा

पता नहीं था I



आज तू ने गोली मार गिराया उसको,

वोह भी था भाई किसी का ,कोई तो प्यार करता होगा उसको

छीन लिया तुने उनकी बुदापे की लाठी को,

आज किसीके घर का दीपक बुझा कर ,अपने घर दिवाली मनायेगा I

पता नहीं था



मनुष्य तू इतना निर्मम हो जाएगा

पता नहीं था I


कभी मन्दिर तुड़वा कर, तो कभी दरगाह जला कर,

अपने रचने वाले का अपमान करके,

आपस मैं भाइयो को लड़ा कर,

अपने को श्रेष्ठ साबित करने उस कोशिश करेगा I

पता नहीं था



मनुष्य तू इतना निर्मम हो जाएगा

पता नहीं था I








बुडापा (Old Age)

बुडापा


संसार की इतनी बड़ी भीड़ में,
सिर्फ़ मैं अकेला रह गया हूँ I
परिचित भी सामने से गुजरने पर बनते हैं अजनबी,
दोष मेरा हैं या समय का या शायद मैं बुडा हो गया हूं I

जिस बेटे को बड़े लाड से पाला था कभी,
वोह बेटा मुझे बोझ समझाता हैं अभी I
टुटा खिलौना जोड़ कर मैं देता था तब,
आज मुझ से कुछ टूट जाने पर वोह कोहराम मचा रहा हैं अब I


उन छोटे हाथों को पकड़कर डग भरना सिखाया था कभी ,
लड़खडाने पर हर कदम संभाला था उसे ,
आज मेरे लड़खडाने पर कौन देगा मुझे ,
हर कदम चलाना हैं उस छड़ी के सहारे ,जो उस पेड़ की टहनी थी कभी I


हर सामान से एक याद जुड़ी हैं किसी की,
लगता हैं जैसे जिंदगी गई हो ठहर I
तिनका तिनका जोड़ कर घर बनाया था कभी,
अब वोह भी लगता हैं मुझ जैसा खंडI


मैं टूटता जा रहा हूं जिंदगी केआखिरी पड़ाव मैं ,
जब मिल नहीं रहा हैं अपनों का प्यार,
गली के उस पुराने टूटे घर की तरह,
जिसकी थी टूटी खिड़किया और दरवाजों मैं दरारI


आज कौन हैं ऐसा ? जो मुझ बंजर वृक्ष को सींचे,
लगती हैं जिन्दगी वोह लौ दीपक की ,
जिसे किसी ने रख दिया हो खुले आकाश के नीचे I

दर्पण देखने पर धुधला सा नज़र आता हैं ,
कुछ मेरे भाग्य की तरह ,
आज साँस चल रही हैं कभी भी रुक जायेगी ,
तब मैं उड़ जाऊँगा उस पंछी की तरहII