पता नहीं था
उस गरीब का घर जला कर, उसको बेघर बना कर,
जाड़े मैं कांपते और गरजती बारिश में
उस पेड़ के नीचे देख, उसको सर छिपाते
उस का घर उजाड़ कर , अपना बसायेगा I
पता नहीं थाI
मनुष्य तू इतना निर्मम हो जाएगा
पता नहीं था I
आज तू ने गोली मार गिराया उसको,
वोह भी था भाई किसी का ,कोई तो प्यार करता होगा उसको
छीन लिया तुने उनकी बुदापे की लाठी को,
आज किसीके घर का दीपक बुझा कर ,अपने घर दिवाली मनायेगा I
पता नहीं था
मनुष्य तू इतना निर्मम हो जाएगा
पता नहीं था I
कभी मन्दिर तुड़वा कर, तो कभी दरगाह जला कर,
अपने रचने वाले का अपमान करके,
आपस मैं भाइयो को लड़ा कर,
अपने को श्रेष्ठ साबित करने उस कोशिश करेगा I
पता नहीं था
मनुष्य तू इतना निर्मम हो जाएगा
पता नहीं था I